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मोदी विरोध का नया तरीका या मजबूरी की दूरी? नीति आयोग की बैठक में क्यों शामिल नहीं हो रहे सीएम नीतीश…

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DESK : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने जा रही नीति आयोग की बैठक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल नहीं हो रहे हैं. सूत्रों के अनुसार सीएम नीतीश के शामिल नहीं होने का मुख्य कारण उनका हाल ही में कोरोना से उबरना बताया जा रहा है. दरअसल, नीतीश कुमार पिछले 26 जुलाई को कोरोना पॉजिटिव हो गए थे. इसके बाद वे 3 अगस्त को स्वस्थ हो गए. लेकिन, कहा जा रह है कि अभी भी नीतीश कुमार स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. इसी कारण वे पीएम मोदी की अध्यक्षता में होने जा रही नीति आयोग की बैठक में सीएम नीतीश शामिल नहीं हो रहे हैं.

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लेकिन देखा जाए तो पिछले एक महीने के दौरान यह दूसरी बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली बैठक में सीएम नीतीश शामिल नहीं होंगे. पिछले महीने जब तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के लिए पीएम मोदी द्वारा रात्रिभोज आयोजित किया गया था तब भी सीएम नीतीश उसमें शामिल नहीं हुए थे. वहीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी सीएम नीतीश शामिल नहीं हुए थे. यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुलाई गई मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए थे. उस बैठक में बिहार डिप्टी सीएम शामिल हुए थे.

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पिछले महीने आयोजित उन आयोजनों से सीएम नीतीश की दूरी को लेकर भी भीतरखाने यही कहा गया कि वे स्वास्थ्य कारणों से दिल्ली नहीं गए. बाद में उनके कोरोना पॉजिटिव होने की भी पुष्टि हुई. हालांकि एक के बाद एक आयोजनों से सीएम नीतीश की दूरी से राजनीतिक हलकों में कई प्रकार की अटकलें लगाई जा रही हैं. इसे एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं होने से जोड़कर भी देखा जा रहा है. हालांकि पिछले महीने 30 और 31 जुलाई को पटना में आयोजित भाजपा के संयुक्त मोर्चा रष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा साफ तौर पर कह चुके हैं कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा हैं. [ads3]

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कहा यह भी गया कि नीतीश कुमार चाहते थे कि नीति आयोग की बैठक बिहार के उप मुख्यमंत्री को भेजा जाए. लेकिन इस बैठक में प्रोटोकॉल के हिसाब से सिर्फ मुख्यमंत्री ही शामिल हो सकते हैं. इसी कारण बिहार का प्रतिनिधित्व कोई नहीं करेगा. नीतीश कुमार का पीएम मोदी से लगातार दूरी बनाकर रखना बिहार में नए सियासी समीकरण की ओर भी इशारा करता है. यह एनडीए में रहते हुए भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी है.

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