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कारसेवकों पर अयोध्या में चली गोली के बाद हिंदुत्व की पताका उठाकर आंदोलन से सूबे की धरती ऐसी गर्मायी और भाजपा के ‘कल्याण’ का द्वार खोल दिया

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इरादे अटल, लेकिन अंदाज अटल बिहारी वाजपेयी से बिल्कुल अलग। सहृदय अटल का सिद्धांत हार न मानने और रार न ठानने का था तो दृढ़संकल्पी कल्याण सिंह को रार ठानने में कोई हिचक कभी नहीं रही। हां, हार न मानने के उनके स्वभाव का प्रमाण अयोध्या में भव्य आकार लेता श्रीराम मंदिर है और पूरे वेग से दौड़ रहा भाजपा का विजय-रथ भी है। जाति-धर्म के महीन जालों से गुथी उत्तर प्रदेश की सियासत को भेदकर भगवा दुर्ग की नींव कल्याण सिंह ने ही रखी। कारसेवकों पर अयोध्या में चली गोली के बाद हिंदुत्व की पताका उठाकर आंदोलन से सूबे की धरती ऐसी गर्मायी और भाजपा के ‘कल्याण’ का द्वार खोल दिया।

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान व हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं। यूं तो यह शख्सियत देश न भूल सकेगा, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति के पन्ने जब भी पलटे जाएंगे, तब-तब भाजपा और हिंदुत्व के कल्याणकारी अग्रजों में यह नाम जरूर नजर आएगा। अयोध्या आंदोलन से जुड़े रहे प्रमुख नेताओं में कल्याण सिंह भी एक रहे। इसी आंदोलन में सत्ता का परित्याग कर उन्होंने न सिर्फ अपने राजनीतिक भविष्य का नया रास्ता बनाया, बल्कि सूबे में भाजपा के कल्याण की कहानी भी यहीं से शुरू हुई। दरअसल, अयोध्या आंदोलन ने भाजपा के कई नेताओं को राजनीतिक पहचान दी। इनमें कल्याण ऐसे नेता हैं, जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद अपनी सत्ता को त्याग दिया था।पांच जनवरी, 1932 को उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में जन्मे राजनीति के इस ‘सिंह’ की पहचान शुरू से ही हिंदुत्ववादी और प्रखर वक्ता की रही। उनके राजनीतिक जीवन का अहम घटनाक्रम 30 अक्टूबर, 1990 के बाद शुरू हुआ, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी। मुलायम पर मुस्लिम-परस्ती की छाप लगते ही भाजपा ने अपने एजेंडे पर काम शुरू कर दिया। क्षमता और तेवरों को देखते हुए पार्टी ने कल्याण सिंह को मोर्चा संभालने के लिए आगे कर दिया। दृढ़संकल्पी कल्याण ने उस मिशन को परिणाम तक पहुंचाया। एक वर्ष में उन्होंने भाजपा को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया कि पार्टी ने 1991 में अपने दम पर सरकार बना ली। कल्याण प्रदेश में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बने

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मुख्यमंत्री बनते ही ली थी मंदिर निर्माण की शपथ सीबीआइ में दायर आरोप पत्र के मुताबिक, मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद कल्याण ने अपने सहयोगियों के साथ अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर निर्माण की शपथ ली। सरकार के कार्यकाल को एक वर्ष भी नहीं गुजरा था कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण को जिम्मेदार माना गया। उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर, 1992 को ही मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया। दूसरे दिन केंद्र सरकार ने प्रदेश की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

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